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भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक करने का अलग ही महत्व होता है।

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12 ज्योतिर्लिंगों का “नाम स्मरण जप” मोक्ष पाने का यह एक सहज मार्ग है 

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 17 अगस्त ::

भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक करने का अलग ही महत्व होता है। कहा गया है कि ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक करने से शिव भक्तों की मनोकामना निश्चित रूप से पूरी होती है। मान्यता है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग है जो सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबेकेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम स्मरण जप करने से ही पिछले सात जन्मों के पाप से मुक्ति मिल जाता है और मोंक्ष पाने का, यह एक सहज मार्ग भी है।

ज्योतिर्लिंग में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भारत देश के गुजरात राज्य के वेरावल में है। मान्यता है कि चंद्रदेव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से तपस्या किया था। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे। शिव पुराण के अनुसार चन्द्रदेव ने राजा दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को नाथ मानकर तपस्या किया था। भगवान शिव के प्रकट होने पर उनसे ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान रहने का प्रार्थना किया। चंद्रमा का ही एकनाम सोम है और नाथ के रूप में मानकर तपस्या करने के कारण यहां का ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात में अरब महासागर के तट पर स्थित है। यह सोमनाथ मंदिर को एक हजार वर्षों में लगभग छह बार ध्वस्त और पुनर्निर्माण किया गया है। सोमनाथ महादेव मंदिर पर पहला हमला ईस्वी 1022 में मुस्लिम आतंकी महमूद गजनवी ने किया था। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। सोमनाथ मंदिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है। इस मंदिर के शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। 

 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दूसरा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में है। इस ज्योतिर्लिंग को दक्षिण कैलाश भी कहते है। यहां माता पार्वती के साथ भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है। यह मंदिर कृष्णा नदी तट पर श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। शिवपुराण के अनुसार, मल्लिकार्जुन 12ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसका निर्माण होयसल राजा वीर नरसिम्हा ने कराया था। एक कथा के अनुसार जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस आये तब गणेश की लिला देख चौक गए। गुस्से में विशाल पर्वत की ओर चल दिए तब कार्तिकेय को मनाने माता पार्वती भी पर्वत की ओर पहुंचीं, इसके बाद भोलेनाथ शिव ने यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो दर्शन दिए। तभी से शिव का यह ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुनम् ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ। 

 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को तीसरा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में है। यह ज्योतिर्लिंग एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत में मुक्ति स्थलों में से एक है। यहां प्रतिदिन सुबह में भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती होती है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से अनजाना भय दूर हो जाता है। महाकालेश्वर मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। मध्य भारत के लोकप्रिय ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसका स्थापना पांच वर्षीय श्रीकर द्वारा किया गया था। यह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। ज्योतिर्लिंग में महाकाल की एक सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहते हैं - 

 “आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।      
भूलोके च महाकलो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।” 

अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर शिवलिंग का विषेश मान्य है। 

 ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को चौथा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा में है। यह ज्योतिर्लिंग ओम् का आकार लिए हुए है इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को  ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। लोगों का मानना है कि यहां देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ था और देवताओं ने भगवान शिव से जीत की प्रार्थना किया था। प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ओंकारेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे और देवताओं को विजय प्राप्त करने में मदद किया था। यह मंदिर नर्मदा नदी के शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यहां मान्धाता नाम का एक राजा ने जनकल्याण के लिए शिव की घोर तपस्या की, तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शिव ने जनकल्याण के लिए यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतरित हुए। यहां राजा के नाम पर शिवपुरी द्वीप का नाम मान्धाता पर्वत नाम रखा गया है। यहां दो अलग-अलग ओंकारेश्वर और अमलेश्वर शिव लिंग है लेकिन एक ही लिंग के दो स्वरुप मानकर पूजा अर्चना किया जाता है।

 वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को पांचवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर 
में स्थित है। यहां त्रिशूल की जगह पंचशूल लगा है । पंचशूल के संबंध में कहा जाता है कि मानव शरीर के पांच विकार - काम, क्रोध, मोह, लोभ और मद का प्रतीक है। इस ज्योतिर्लिंग को बाबाधाम के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को 51 शक्ति पीठों में एक माना जाता है। सती का ह्रदय भाग यहां स्थित है इस शक्तिपीठ को ही ह्रदय शक्तिपीठ देवी दुर्गा मंदिर के नाम से जाना जाता है। एक ही प्रांगण में दोनों मंदिर स्थापित है इन दोनों मंदिर के शिखर का गठबंधन भक्त गण अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर कराते हैं। यहां एशिया का सबसे बड़ा 120 किलोमीटर का मेला श्रावण मास में लगता है देश विदेश से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैद्यनाथ धाम में मुख्य मंदिर के साथ 21 मंदिर भी शामिल है।

 भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को छठा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे के सहम्द्री छेत्र में भीमा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को नाना फडननीस ने लगभग 18वीं शताब्दी में बनवाया था। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे एक पौराणिक कथा है, कथा के अनुसार भगवान राम ने लंकापति रावण के साथ छोटे भाई कुंभकरण का वध किया था। कुंभकरण के वध के बाद उसके पुत्र भीमा का जन्म हुआ। भीमा जब बड़ा हुआ तो उसे भगवान राम द्वारा पिता के वध की जानकारी हुई यह ज्योतिर्लिंग इसी भीमा से जुड़ी हुई है। भीमशंकरम् ज्योतिर्लिंग को शिवपुराण में असम राज्य के कामरुप जिले में ब्रह्मपुत्र नदी तट के ऊपर निलांचल पर्वत पर कामाख्या शक्तिपीठ के समीप भीमशकर भैरव को बताया गया है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को सातवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाड जिले में स्थित है। श्रीरामचरित मानस व अन्य पुराणों के अनुसार विष्णु अवतार श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले समुद्र से रास्ता मांगने के लिए यहीं समुद्र तट पर अपने अराध्य शिव की पूजा अर्चना की थी। राम कि अराधना से प्रसन्न शिव प्रकट हो अपने को राम से जोड़कर श्री रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए।

 नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका में स्थापित है। एक कथा के अनुसार यहीं पर दारुका नामक राक्षश ने सुप्रिया नामक शिव भक्त को कैद कर लिया था। सुप्रिया द्वारा ओम नमः शिवाय के जाप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और यहां आकर दारुका का वध किया और जनकल्याण के लिए आज भी विराजमान हैं। नागेश्वर मंदिर का प्रमुख आकर्षण भगवान शिव की 80 फुट ऊची विशाल प्रतिमा है। यह ज्योतिर्लिंग मंदिर पत्थर से बना है जिसे द्वारका शिला के नाम से जाना जाता है। इस पर छोटे-छोटे चक्र बने हुए हैं यह चक्र तीन मुखी रुद्राक्ष के आकार का होता है। कुछ लोगों की मान्यतानुसार कि हैदराबाद अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग माना जाता है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को नवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी काशी में स्थित है। काशी शिव का पावन नगरी है। यहां मृत्यु को प्राप्त होने वालों को मोंक्ष प्रदान होने की बात कही जाती है। यहां 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है। काशी एकमात्र ऐसा नगर है जहां नौ गौरी देवी, नौ दुर्गा, अष्ट भैरव, 56 विनायक और बारह ज्योतिर्लिंग में से  9वां ज्योतिर्लिंग के रूप में बाबा विश्वनाथ व शक्तिपीठ में मणिकर्णिका घाट पर विशालाक्षी देवी विराजमान है। 

 त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग को दसवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक से 35 किलोमीटर और पंचवटी से 18 मील दूर ब्रह्मगिरि के समीप गौतमी, गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। यहां पवित्र नदी गोदावरी का उद्गम स्थान माना जाता है। मुगल बादशाह छठे शासक औरंगजेब ने 1690 में नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर के अंदर मौजूद शिवलिंग को तुड़वा दिया था। मंदिर को नुकसान पहुंचाने के बाद मंदिर के ऊपर मस्जिद का गुंबद भी बनवा दिया था। इसलिए यहां वास्तविक ज्योतिर्लिंग के रूप में शिवलिंग नही है।  केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को एकादश ज्योतिर्लिंग माना जाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में हिमालय के समीप स्थित है। केदारनाथ में ग्लेशियस टूटने से प्रलयकारी स्थिति पैदा हुई और आसपास सब जलधारा में बह गया लेकिन केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर प्रलयकाल का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। केदारनाथ धाम में देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं, यहां आने वाले हर भक्त की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। महाभारत युद्ध के बाद विजयी पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने यहीं आकर शिव अराधना किए थे। यहां आने पर शिव भक्तों को शांति शकुन के साथ मोंक्ष प्राप्ति का मार्ग सुलभ हो जाता है। 

 घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंग माना जाता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद निकट एलोरी गुफाओं के पास स्थित है। इस घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरी की गुफाएं ज्योतिर्लिंग कि खुबसुरती में चार चांद लगा दिया है। इस घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में दौलताबाद से बाहर मील दूर वेरुलगांव के पास स्थापित है।

पुराणों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया गया है। कौन सा ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है उसका वर्णन इस प्रकार है :-

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां
महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥1॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग जहां जहां है वहां स्यम् शिवलिंग के रूप में देवाधिदेव महादेव विराजमान रहते हैं और पिछले सात जन्मों के पाप से मुक्त होने, मोंक्ष पाने का, यह एक सहज मार्ग कि इन 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम स्मरण जप करते रहना चाहिए।

ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त भी शिव भक्तों के लिए प्रसिद्ध शिव धाम है, जो कैलाश मानसरोवर, पशुपतिनाथ मंदिर, रामलिंगेश्वर मंदिर, प्रम्बानन मंदिर, सागरशिव मंदिर, मुन्नेश्वरम मंदिर, कटासराज मंदिर, और शिवा मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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