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रक्षाबंधन बंधन 31 अगस्त को मनाया जायेगा  

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रक्षाबंधन बंधन 31 अगस्त को मनाया जायेगा  

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 21 अगस्त ::

ग्रह-गोचर ने बिगाड़ी भाई- बहन का रक्षाबंधन। इस वर्ष लोगों के बीच यह संशय व्याप्त है कि रक्षाबंधन 30 अगस्त को होगी या 31 अगस्त को। ब्राह्मणों की माने तो कोई 30 और कोई 31 बता रहे है। सर्वविदित है कि रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इस वर्ष पूर्णिमा 30 अगस्त को सुबह 10.58 बजे से शुरू होकर 31 अगस्त को प्रातः 7.05 बजे तक रहेगा। विशेषज्ञों का माने तो समय में थोड़ा आगे पीछे हो सकता है, क्योंकि हर पञ्चांग में थोड़ा बहुत अंतर रहता है। लेकिन 30 अगस्त को रात 9.01 बजे तक भद्रा रहेगा। भद्रा काल में रक्षाबंधन और होलिका दहन वर्जित है। इसे शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि भद्रा का असर स्वर्ग लोक में शुभ, पाताल लोक में धन और पृथ्वी लोक में मृत्यु होता है। इसलिए भद्रा काल में शुभ काम वर्जित होता है। इसलिए उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए रक्षाबंधन इस वर्ष 31 अगस्त को मनाया जाना श्रेयस्कर और पुण्यकारी होगा। ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस वर्ष रक्षाबंधन 31 अगस्त को शतभिषा नकछत्र तथा बुद्धदित्य योग में मनाया जायेगा। यह योग और नकछत्र शुभ कहलाता है। 

रक्षाबंधन भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाइयों की कलाई में राखी बांध कर उनकी दीर्घायु रहने के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं, ताकि विपत्ति आने के दौरान वे उनकी (अपनी बहन की) रक्षा कर सकें। राखी बांधने के बदले में भाई, अपनी बहन की हर प्रकार के अहित से रक्षा करने का वचन देते हुए पारम्परिक उपहार देते हैं। रक्षाबंधन मुख्यतः उत्तर भारत में मनाया जाता है।भारत के अतिरिक्त दूसरे देशों में जैसे- नेपाल में भी भाई बहन के प्यार का प्रतीक मानकर खूब हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

रक्षाबंधन का इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिशुपाल का वध करते समय श्रीकृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी, इस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था और श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा करने का वचन दिया था, जिसे श्रीकृष्ण ने महाभारत में पांडवों की पत्नी द्रौपदी की चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। इस प्रकार भाई-बहन का बंधन विकसित हुआ था। उसी समय से राखी बांधने का परम्परा शुरू हुआ।

इतिहासकारों के अनुसार रक्षाबंधन की शुरुआत लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत की जिसमें सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ की है। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। उस समय चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी, तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।

वर्तमान में रक्षाबंधन जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाली एकता का एक बड़ा पवित्र पर्व माना जाता है। रक्षा का अर्थ है बचाव, और मध्यकालीन भारत में जहां कुछ स्थानों पर, महिलाएं असुरक्षित महसूस करती थी, तो वे पुरूषों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थी। इस प्रकार राखी भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन को मजबूत बनाती है और भावनात्मक बंधन को पुनर्जीवित करती है।

धार्मिक स्तर पर रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण अपने पवित्र जनेऊ को बदलते हैं और एक बार पुन: धर्म ग्रंथों के अध्ययन के प्रति स्वयं को समर्पित करते हैं।    

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