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ईसा मसीह का जन्म के समय नाम एमानुएल था - एमानुएल शब्द का अभिप्राय मुक्ति प्रदान करने से है 

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ईसा मसीह का जन्म के समय नाम एमानुएल था - एमानुएल शब्द का अभिप्राय मुक्ति प्रदान करने से है 

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 25 दिसम्बर ::      

भारत में विभिन्न धर्मालम्वी के लोग रहते हैं, जिनमें प्रमुख है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध।  यही कारण है कि सभी तरह के पर्व, धर्म निरपेक्ष भारत में  मनाए जाते  हैं। क्रिसमस लगभग विश्व के सभी देशों में मनाया जाता है। भूगोल की दृष्टि से देखा जाय तो यह दिन वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। क्रिसमस मुख्य रूप से इसाई धर्म के अनुयायियों और उसके समर्थकों द्वारा मनाया जाता है। ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर की रात बारह बजे बेथलेहम शहर में स्थित एक गौशाला में हुआ था। इनकी माँ का नाम मरियम था, जो दाउद वां की थी। जन्म के समय ईसा मसीह का नाम एमानुएल रखा गया था। इस शब्द से अभिप्राय मुक्ति प्रदान करने वाले से है। इनके नाम के अनुरूप ही कहा जाता है कि ईश्वर ने उन्हें इस धरती पर मुक्ति प्रदान करने वाले के रूप में अपना दूत बनाकर भेजा था, जिसे ईसा मसीह ने अपने कार्यों द्वारा सिद्ध भी कर दिखाया था। क्रिसमस से ठीक एक दिन पूर्व 24 दिसम्बर से लोग अपने घरों के साथ-साथ धार्मिक स्थलों को सजाने लग जाते हैं। ईसा मसीह के जन्म दिन के दिन रात्रि 12 बजे गिरजाघरों में प्रार्थना सभा शुरू हो जाती है और इसके साथ ही शुरू हो जाता है क्रिसमस। प्रार्थना समाप्त होने पर वहां उपस्थित सभी लोग एक दूसरे को बधाई देकर अपने अपने घर लौट जाते हैं। 

ईसा मसीह के 12 पट शिष्य थे, जिनमें से 11 शिष्य धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अलग अलग दिशाओं में चले गये थे। एक पट शिष्य संत थॉमस समुद्री रास्ते से ईस्वी सन् 52 में भारत के दक्षिण तट पर उतरे थे, तब वहाँ चोल वंश का शासन था। वह केरल के मालाबार तट के मुजीरिश या मुचिरी नामक स्थान पर पधारे थे और केरल-तमिलनाडु क्छेत्र में लगभग 20 वर्ष रहे थे। संत थॉमस ने भारत आते ही 52 वर्ष में पलायुर में पहले धर्म स्थल या चर्च की स्थापना की थी। जिसे संत थॉमस चर्च के नाम से जाना जाता है। यह चर्च दुनिया में सबसे पुराना चर्च में शामिल है। इससे पहले चर्च  के अलावा भी भारत में छः चर्च की स्थापना उन्होंने अपने जीवनकाल में की थी।  गौर करने की बात है कि देश के सबसे पुराने चर्च संत थॉमस चर्च, पलायूर से करीब 48 किलोमीटर दूर कोडुनगल्लूर में भारत की सबसे पुरानी चेरामन जुमा मस्जिद स्थित है, जिसका निर्माण मलिक इब्न दिनार ने 629 में कराया था।  

मान्यता है कि बाइबल में यीशु को “शांति का राजकुमार” कहा गया है। यीशु हमेशा अभिवादन के रूप में कहते थे - “शांति तुम्हारे साथ हो, शांति के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है”, शांति के राजकुमार यीशु का जन्म प्रेम, सेवा, सद्भाव, भाईचारा, संगीत और शांति का आह्वान है। यीशु एक असहाय बच्चे के रूप में गरीबों के बीच आश्रय पाने के लिए दिल के दरवाजे पर दस्तक देते है। 

क्रिसमस पर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ज्यादातर यह प्रथा पश्चिमी देशों की है। बालक यीशु के जन्म उत्त्सव के रूप में क्रिसमस की तैयारी के पहले मसीही जिन जिन  सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं, उन प्रतीक चिह्न का क्या अर्थ के संबंध में चर्च के फादर का कहना है कि सांता क्लॉउस सांता नाम के एक राजा ने बालक यीशु के अनुयायी होकर धार्मिकता को अपनाया था। वे पश्चिम देश के लूसिया प्रांत यूरोष के फादर थे जो सांता कहलाए। क्रिसमस ट्री को जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। इसे ईश्वर की ओर से दिए जाने वाले लंबे जीवन के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता रहा है। स्टार बालक यीशु को भोर का तारा के रूप में जाना जाता है। यह संदेश देता है कि बालक यीशु का जन्म हुआ है और 25 दिसंबर बड़ा दिन क्रिसमस आ रहा है। घंटियां क्रिसमस ट्री और घर के दरवाजों व अन्य जगहों पर घंटियां लगायी जाती है।  यह किसी भी शुभ कार्यों व शांति का प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

रिथ क्रूस पर चढ़ाने के पहले प्रभु यीशु के सिर पर कांटों का मुकुट पहनाया था और यीशु का मजाक उड़ाया था। इसी मुकुट रीथ को प्रतीक माना जाता है। मेमना मानव द्वारा किये पापों के बदले यीशु ने अपने आप को सूली पर चढ़वा लिया और यही मेमना इसाहक व इब्राहिम की बलि के प्रतीकात्मक के रूप में जाना जाता है। मोमबत्ती मोमबत्तियां जलाना जिसका अर्थ है, यीशु संसार की ज्योति थे, जिन्होंने पाप के अंधेरों को चीर कर दूर-दूर तक प्रकाश फैलायी है। चरनी जब बालक यीशु का जन्म हुआ, तो उसकी मां मरियम ने उन्हें चरनी में लिटा दिया था। क्रिसमस बिना चरनी के सम्पूर्ण ही नहीं होता है। चरनी प्रभु यीशु मसीह की याद का अनुपम और आध्यात्मिक प्रतीक है।

ईसाई धर्म के विशालता के कारण इस सम्प्रदाय के लोग लगभग विश्व के हर हिस्से में रहते हैं। इसलिए क्रिसमस पूरे विश्व में धुमधाम से मनाया जाता है। सत्य, अहिंसा और मानवता के संस्थापक और प्रतीक कहलाते हैं ईसा मसीह।

किदवंती यह भी है कि ईसा मसीह ने भेड़ बकरियों को चराते हुए उस समय प्रचलित अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति विरोध जाताना शुरू किया था, जिसका लोगों ने काफी विरोध किया था। उनके विरोधी ज्यादा होने के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिलने में समय नहीं लगा। ईसा मसीह के विचारों को सुन यहूदी लोग घबरा उठे। यहूदी अज्ञानी होने के साथ-साथ अत्याचारी भी थे। वे ईसा मसीह को मूर्ख कह कर जलते भी थे लेकिन अंदर से वह ईसा मसीह से भयभीत भी रहते थे। उन्होंने ईसा मसीह का विरोध करना जोर-सोर से शुरू कर दिया था और यहूदियों ने ईसा मसीह को जान से मार डालने की योजना भी बनानी शुरू कर दी थी। ईसा मसीह को जब पता चला कि यहूदि उन्हें मारना चाहते हैं तो वे यहूदियों से कहा करते थे कि तुम मुझे आज मारोगे मै कल फिर जी उठूंगा।
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